Friday 26 December 2014

धर्मान्तरण के पीछे की राजनीति

लगता है कि संघ परिवार से जुड़े कुछ संगठनों ने धर्मांतरण के मुद्दे को एक बहुत सोच समझ के ज्‍वलन्‍त समस्‍या के रूप में खड़ा कर दिया है। अभी तक धर्मान्‍तरण का विरोध अधि‍कतर हिन्‍दु संगठन ही करते रहे क्‍योंकि धर्म परिवर्तन की मुहिम ईसाई व मुस्लिम संगठनही चलाते रहे है। यह धर्मान्‍तरण का ही कमाल है कि देश के उत्तर पूर्वी प्रान्‍तों में विभिन्‍न ईसाई संगठनों ने मिलकर देश के उत्तर पूर्वी प्रान्‍तों की demographic profile पूर्णतया बदल डाली। मसलम देश की आजादी के समय नागालैंड में केवल 2 प्रतिशत ईसाई जनसंख्‍या थी। आज नागालैंड में करीब 98 प्रतिशत लोग ईसाई हो चुके हैं। झारखंड, छत्तीसगढ, उड़ीसा इत्‍यादि प्रान्‍तों की आदिवासी कहलाने वाली जातियां भी ईसाई मिशनरियों के लपेटे में आ चुकी हैं।
मुस्लिम संगठन भी कई प्रान्‍तों में गरीब दलित तबकों को धर्म परिवर्तन का शिकार बनाते आये है। इससे आसाम व बंगाल जैसे सीमान्‍तर प्रान्तों में तो बहुत से हिन्‍दु बहुल्‍य जिले मुस्लिम बहुल्‍य जिलोंमें बदल चुके हैं। यह कोई संयोग की बात नहीं कि जहां जहां हिन्‍दु धर्म से काट कर गरीब तबकों को ईसाई धर्म या इस्‍लाम के दायरे में शामिल कर लिया गया ऐसे सभी प्रान्‍तों व जिलों में अलगाव वादी, आंतकवादी व माओवादी विचारधारा व संगठन मजबूत हुये हैं। जब भी भाजपा या हिन्‍दु संगठनों ने धर्मान्‍तरण के इन खतरनाक पहलूओं की ओर ध्‍यान दिलाया तो काग्रेंस व वामपंथी पार्टियों ने धर्मनिरपेक्षता व संविधान में धार्मिक स्‍वतन्‍त्रता की दी आजादी का हवाला देकर भाजपा को चुप करा दिया और उन्‍हें फासिस्‍ट व अल्‍पसंख्‍यक विरोधी करार दिया।

इस मामले में भाजपा की मांग कि धर्मान्‍तरण पर कानूनी प्रतिबन्‍ध लगाया जाये, महात्‍मा गांधी के विचारों से बिल्‍कुल मेल खाती है। बापू का भी ये मानना था कि धर्मान्‍तरण के पीछे बहुत ही हिंसात्‍मक सोच छुपी हुई है, क्‍योकि यह काम दूसरों के पैदायशी धर्म व संस्‍कारों पर घटिया आक्षेप लगाये बगैर होता ही नहीं। ईसाई व इस्‍लामी मिशनरी हिन्‍दु आस्‍थाओं, देवीदेवताओं व संस्‍कृतिपर बहुत ही भद्दे व आपत्तिजनक कटाक्षोंको ही हथियार बनाकर धर्मपरिवर्तन का काम करते आये हैं। जहां जहां वे सफल हुये है वहां वहां समाज और पारिवारिक रिश्‍ते दोनों टूटे हैं।
अब जब हिन्‍दु संगठनों ने खुलेआम ‘’घर वापसी’’ के नाम पर धर्म परिवर्तन की लड़ाकू मुहिम छेड़ दी है तो इस सवाल पर दोहरे मापदंड की राजनीति चलाना कठिन हो जायेगा। यदि ईसाई व मुस्लिम संगठनों द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तनों का बचाव कांग्रेस व वामपंथी सगंठन धार्मिक स्‍वतन्‍त्रता का नाम देकर करते हैं तो यह हक हिन्‍दु संगठनों को भी देना पड़ेगा। यदि इस पक्ष के लोग हिन्‍दुओं द्वारा किये जा रहे धर्म परिवर्तन के खिलाफ उठ खड़े होते है तो उन्‍हें ईसाईयों व मुसलमानों पर भी बंदिशें स्‍वीकार करनी पड़ेगी। इस लिहाज से विश्‍व हिन्‍दु परिषद, आर्यसमाज व आरएसएस इत्‍यादि ने बहुत ही शातिर चाल चली है।
परन्‍तु दुख इस बात का है कि हिन्‍दु संगठनों ने आगरा में जो घटिया हथकंडें अपना कर 200 गरीब फटेहाल कूडा बीनने वाले बांगलादेशीयों के साथ ‘’घर वापसी’’ की नौटंकी रची, वह सभी संवेदनशील हिन्‍दुओं के आत्‍म सम्‍मान पर गहरी चोट पहुंचाती है। यदि हिन्‍दु संगठन ईसाई व मुस्लिम संगठनों के साथ इस सवाल पर टक्‍कर लेना चाहते हैं तो उनके शातिर तौर तरीकों से कुछ सबक लें। नहीं तो उन्‍हें बहुत जग हंसाई झेलनी पड़ेगी और इन हरकतों से हिन्‍दु धर्म की छवि बहुत बिगड़ेगी।
जब ईसाई लोग किसी दलित या आदीवासी परिवार को अपने धर्म के आगोश में ले लेते है तो अक्‍सर उस परिवार को बेहतर शिक्षा व स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं की गारंटी भी मिल जाती है। इसके अलावा उनके नेटवर्क द्वारा उन्‍हें नौकरी इत्‍यादि ढ़ूढ़ने में भी बहुत मदद मिलती है। इसके साथ साथ तिरस्‍कृत जीवन से भी काफी हद तक मुक्ति मिल जाती है।
इसी प्रकार मुस्लिम धर्म में शामिल होने वाले परिवारों को भी पिछड़े और अछूत होने की मोहर से कुछ राहत मिल जाती है व कई प्रकार की आर्थिक व सामाजिक सुविधायें भी उन्‍हें मुहैया कराई जाती है। परन्‍तु हिन्‍दु संगठनों ने अपने को इस दिशा में बहुत कम सक्षम किया है। आज भी अनुसूचित जाति या जनजाति के प्रति तिरस्‍कार और घृणा की भावना से हिन्‍दु समाज अपने को मुक्‍त नहीं कर पाया है। इनकी तुलना में आर्ट ऑफ लिविंग जैसे नये हिन्‍दु संगठन जो जात पांत के फसादों से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं और जिन्‍होनें बहतरीन जीवन शैली प्रदान करने के कुछ असरदार प्रयास किये है-- उनकी ओर लाखों लोग स्‍वंय ही खिंचे आ रहे हैं हालांकि वो कभी धर्मपरिवर्तन जैसा शब्‍द जुबां पर भी नहीं लाते। आर्यसमाज और विश्‍व हिन्‍दु परिवर्तन को आर्ट ऑफ लिविंग जैसे संगठनों से ये सीखने की जरूरत है कि कैसे हिन्‍दु धर्म की अंदरूनी विशाल हृदयता के सहारे उसे इतना आकर्षक बनाया जा सकता है कि किसी को अन्‍य धर्मो की ओर तांकझांक करने की आवश्‍यकता ही न पड़े।

Madhu Kishwar

Madhu Kishwar
इक उम्र असर होने तक… … … … … … … … … … … … … … … … … … … … … … …اک عمر اثر ہونے تک