Wednesday 23 July 2014

नरेन्द्र मोदी के नाम खुला पत्र



नरेन्‍द्र भाई, आज देश में ऐसे लोगों की भरमार है जो सोचते है कि उनकी सलाह के बगैर आप देश कैसे चला पायेगे। ऐसे लोगों की कतार कितनी लम्‍बी है इसका अन्‍दाजा मैं इसी बात से लगा सकती हूं कि कई ऐसे आतुर उम्‍मीद्वार मुझ जैसे नाचीज के दरवाजे पर भी आकर अपनी अर्जी के साथ साथ अपनी बुद्धिमत्‍ता का प्रर्दशन दे चुके हैं। इनमें से बहुत ऐसे भी है जो कि पिछले 12-13 साल से आपको चुनिन्‍दा गालियां देते रहे और कई ऐसे भी जिन्‍होने बडे लम्‍बे चौडे खुले पत्रों  के माध्‍यम से आपको भारी भरकम सुझाव भी दे डाले। इनमें से अधिकतर ऐसे लोग है जिन्‍होनें  गुजरात में आपके शासनकाल पर सरसरी नजर भी नहीं डाली और न ही कभी आपकी वेबसाइट तक देख्‍ने की जरूरत समझी।

मेरी खुशकिस्‍मती है कि मुझे आपको बिन मांगी सलाह देने की जरूरत इसलिये नहीं पड रही क्‍यूंकि पिछले करीब डेढ साल मैंने बारीकी से आपकी शख्सियत और बतौर मुख्‍यमंत्री आपकी कार्यक्षमता को समझने व परखने का भरसक प्रयास किया है। और इसलिये मुझे मालूम है कि भारत मां के लिये व इस देश के वासियों के लिये मेरी जो भी विश लिस्‍ट रही है उससे भी कहीं अधि‍क सुन्‍दर और सकारात्‍मक सपने आपने इस देश को दुनिया में गौरवान्वित स्‍थान पर खडा करने के लिये संजो रखे है और उन्‍हे कार्यान्वित करने की क्षमता भी आप रखते हैं। सच तो यह है कि मैंने दिलो जान से आपको समर्थन इस उम्‍मीद से दिया कि आप प्रशासन प्रणाली को गरीब व पिछडे वर्गों के हितो के रक्षक के रूप में ढालने के प्रयासों में कोई कसर नहीं छोडेगे ताकि मेरे जैसे वे सब लोग जो दशको से नागरिक अधिकारों के विभिन्‍न मोर्चो में लड़ लड़ के हताश हो चुके हैं, अब अपनी उर्जा सरकार को सकारात्‍मक सहयोग के रूप में लगा सकेंगे।

परन्तु कुछ एक विषयों पर आपके समक्ष अपनी चिन्‍ताये और आकांक्षाये रखने से मन बाज नहीं आ रहा।

अभी तक के जीवन में आपने एक अत्‍यन्‍त सादगी पसन्‍द सन्‍यासी सरीखे व्‍यकित के रूप में खुद की पहचान खडी की है जिसका गुजारा एक छोटे से झोले में पैक दो कुर्तो व कुछ एक मंजन बु्श व कंघी जैसी आवश्‍यक वस्‍तुओं से हो जाता था। परन्‍तु पिछले एक-आध वर्ष में आपकी एक नयी पहचान बनने लगी है – फैशनआइकन के रूप में। आपको जानने वाले सभी व्‍यक्तियों को मालूम है कि आप बचपन से ही बहुत सलीके से रहना और कपडे पहनना पसन्‍द करते है -- वो तब भी जब आपके पास केवल दो जोडी कपडे होते थे। परन्‍तु आज जब टीवी चेनल आपके वार्डरोब में कितने सैकडो कुर्ते या जैकट है इस पर लम्‍बे चौडे प्रोग्राम बनाने लगे हैं, तो मुझे कुछ अटपटा महसूस हो रहा है विशेषकर इसलिये क्‍यूंकि इन शोलो को थोडी बहुत हवा आप भी देते दिखाई दे रहे है। दिन में तीन पब्लिक अपीयरैंस है तो क्‍या तीन अलग अलग कुर्ते और जैकट में दिखना क्‍या जरूरी है? आप पहले की तरह धूप मिट्टी में तो जा नही रहे कि आपके सुबह के पहने कपडे दोपहर तक मैले हो जाये। कृप्‍या  अपने वार्डरोब को थोडा डाउनप्‍ले कीजिये। यह ना हो कि जैसे स्‍नूपगेट जैसे वाहियात खेल कई सालों आपको हल्‍का दिखाने में इस्‍तेमाल होते रहे, अब लोग आपके कपडों पर आपके काम से ज्‍यादा ध्‍यान देने लगे। शिवराज पाटिल जैसे निकम्‍मे राजनेता के लिये अपने सूटबूट के आधार पर पहचान बनाना समझ आता है। परन्‍तु जैसे गुजरात में आपकी पहचान एक सादगीपसन्‍द जन सेवक के रूप में बनी, वही पहचान दिल्‍ली में भी बनी रहे तो अच्‍छा है।
आपको जाननेवाला हर व्‍यक्ति इस बात की गवाही देता है कि आपके विरोधी भले ही आपको कितना भी सताते रहे हों आप अपने सकारात्‍मक कार्यो से विरोधियों को पस्‍त करने में विश्‍वास रखते हैं। आपने गुजरात में भली भाति यह सि‍द्ध करके दिखाया कि जितने पत्‍थर आपके उपर फेके गये उन्‍हे अपने लिये पुल या सीढी बनाने का काम किया, जितना कीचड़ आप पर फेंका गया आपने उतना ही अधिक गौरवशाली भाजपा का कमल आपने गुजरात में खिलाया। दुश्‍मनी भाव से आपने किसी को पस्‍त नहीं किया।

दिल्‍ली में आकर भी आपने इस बात की घोषणा कर दी है कि आपकी सरकार कोई विच हन्‍ट नहीं करने वाली, किसी व्‍यक्ति या दल से बदला लेने की भावना से आपकी सरकार कुछ नहीं करेगी। परन्तु राष्‍ट्र की सुरक्षा और देशहित की यह भी मांग है कि जिन जिन व्‍यक्तियो या दलों ने खतरनाक षडयंत्र रखकर गोधरा कांड को जन्‍म दिया ताकि वह गुजरात में सामप्रदायिक हिंसा भडकाकर दिल्‍ली में अटल जी की सरकार और गुजरात में आपकी सरकार ध्वस्‍त करने में सफल हो, उनका पर्दापाश होना बहुत जरूरी है। अटलजी के प्रधानमंत्री बनते ही कांग्रेस पार्टी व वामपंथी दलों ने चुनिन्‍दा एनजीओ, पत्रकारो व बद्धिजीवियों को एक बडी देशव्‍यापी फौज खडी की – जिनके तार भारत विरोधी विदेशी ताकतो व आतंकवादी गुटों से भी जुडे है। इन सब का सुव्‍यवस्थित ढंग से पर्दापाश होना अति आवश्‍यक है। यह सवाल सिर्फ अटलजी या भाजपा के खि‍लाफ षडयत्र का नहीं। यह सारा षडयंत्र भारत देश को तहस नहस करने की सुनियोजित योजनाओ का हिस्‍सा है जिसमें जाने अनजाने बहुत से प्रतिष्ठित लोग भी जुड गये। इसका खुलासा करना बहुत जरूरी है कि अमर्त्‍य सेन जैसे नामी लोगों ने भारत विरोधी ताकतो को बौदि्धक प्रतिष्‍ठा देने का काम क्‍यूं और कैसे ठाना, तमाम अमरीकन विश्‍वविद्यालयों के दक्षिण ऐशिया अध्‍ययन केन्‍द्रो के नामी ग्रामी प्रौफेसरो को किसने और क्‍यूं पटाया कि भारत का इतना विकृत और घिनौना चेहरा दनिया में इतना जोर शोर से प्रचलित कर दे कि तमाम मुस्लिम जेहादी संगठन हिन्‍दुस्‍तान को आंतंकवादी हमलों के लिये मख्‍य टारगेट बनाने को अपना मजहबी फर्ज बना लें।

जिन जिन एनजीओ ने गुजरात दंगो का विकृत दुष्‍प्रचार दुनिया भर में फैलाया व राष्‍ट्रवादी ताकतो के खिलाफ विषैला मुहिम चलाया, बहुत से झूठे मनगढन्‍त मुकदमें दायर किये, व हमारे मुसलमान भाइबहनों को हिन्‍दू समुदाय के खिलाफ खडा कर साम्‍प्रदायिक रिश्‍तो को जहरीला बनाया – उन सब के कार्यकलापों की निष्‍पक्ष व पारदर्शी जांच बहुत जरूरी है, ताकि देश के आवाम को मालूम हो सके कि यह एनजीओ किसकिस के बलबूते पर ऐसा तांडव करते आये है। आर्थिक भ्रष्‍टाचारपर नियन्‍त्रण पाना जितना जरूरी है, उससे भी ज्‍यादा जरूरी  है ऐसी व्‍यक्तियो व संगठनों पर अंकुश लगाना जो कि संदिग्‍ध विदेशीं फंडिग एंजेन्सियो के बलबूते पर देश की राजनीति व आर्थिक नीतियों में खतरनाक विकार ला रहे है। यह काम गृह मत्रांलय या कोई सरकारी महकमा नहींकर सकता। इस काम के लिये बाकायदा एक Truth Commission बिठाना होगा, जिसको बाकायदा एक कानूनी तहकिकात का पूरा सामर्थ्‍य प्राप्‍त हो।

मैं किसी भी एनजीओ पर प्रतिबंन्‍ध या बैन लगाने के हक में नहीं, सिवाय उनके जो आतंकवादी ताकतो से सीधा रिश्‍ता रखने हैं। परन्‍तु ऐसे बहुत से एनजीओ है जो विदेशी फंडिगं व नेटवर्क से जुडें है जो भारत में आतंकवादी अलगाववादी राजनीति के पनपने के लिये उपजाउ भूमि तैयार करते है या उनके बचाव में मानव अधिकारों के योद्धाओ का मखौटा पहन ढाल बन के खडे हो जाते है,उनका सही चेहरा इमानदरी से देश के सामनेलाना बहुत जरूरी है।

देश के FCRA कानून में स्‍प्‍ष्‍ट रूप से यह हिदायत दी गई है कि FCRA का पैसा राजनैतिक गतिविधियों के लिये इस्‍तेमाल नहीं किया जा सकता। परन्‍तु बहुत से संगठन FCRA कानून के तहत लाये गये पैसो का इस्‍तेमाल चुनिन्दा पार्टीओं व विदेशी संगठनों के नापाक ऐजेन्‍डों को अग्रसर करने के लिये खुलेआम कर रहे है। इस समस्‍या का हल सिर्फ FCRA कानून को मुस्‍तैदी से लागू करने से नहीं हो सकता। इसका केवल एक ही हल है – NGOs को विदेशी फंडिंग ऐजेन्सियों के शिकन्‍जे से पूरी तरह मुक्‍त किया जाये। किसी पर कोई राजनैतिक प्रतिबन्‍ध लगाने की जरूरत नही बस इतना भर काफी है कि जो एनजीओ यदि भारत में काम करना चाहते है तो भारत में ही फन्‍ड जुटाने की क्षमता पैदा करें।

इसी तरह देश मे जो बडे बडे स्‍कैम पिछले कुछ वर्षों में उजागर हुये हैं, कृपया इनकी तहकीकात और इनके मुकदमे स्‍पीड से होने का इन्‍तजाम करना उतना ही जरूरी है, जितना भविष्‍य में भ्रष्‍टाचार को रोकने के संस्‍थागत उपाय। कृपया अटल जी की तरह इस मामले में उदारता ना ही दिखायें तो देश के लिये अच्‍छा होगा। यदि उन स्‍कैम्‍स  के कर्ता धर्ता लोगों की जवाबदेही स्थापित करने में आपने ढील  बरती तो जनता में यह संदेश फैलाने वाले लोग ताक में बैठे है कि आपने उन भ्रष्‍ट ताकतों से कोई अन्‍दरूनी समझौता कर लिया है।‍ ाकायदाएक ट्रूथ कमीशन बिठाया 
  
सादगी के थीम पर वापिस आते हुये एक बात और जोडना चाहती हूं -- मुझे  लगा कि आपकी स्‍वेरिन्‍ग-इन को  बहुत low key event  होना चाहिये था। परन्‍तु ना तो आपका swearing in सादगी का परिचय दे पाया और ना ही एक राज्‍याभिषेक जैसा भव्‍य उत्‍सव बन वाया। गुजरात के मुख्‍य मन्‍त्री के नाते भी आपने शुरू से ही उत्‍सवों की बौछार कर दी थी। परन्‍तु वे सब उत्‍सव अहम सामाजिक मुद्दों से जोडे गये - बच्‍चों को स्‍कूल के लिये प्रेरित करने के लिये शाला उत्‍सव की परिकल्‍पना बहुत मार्मि है। किसानों तक नये बीज व तकनीक ले जाने के लिये कृषि उत्‍सव, गुजरात का पर्यावरण सुधारने के लिये वृक्ष उत्‍सव इत्‍यादि गुजरात के सामाजिक व सरकारी कैलण्‍डर का अभिन्‍न अंग बन गये। परन्‍तु इनमें से कोई भी आपके व्‍यक्‍ति विशेष से नहीं जुडा दिखा।
पिछले वर्ष मैंने गुजरात में आपकी सरकार द्वारा आयोजित दजर्नो कार्यक्रम देखे। हरेक में दूरदर्शी सुव्‍यवस्था व नागरिकों के प्रति संवेदनशीलता की झलक दिखी। परन्‍तु 26 मई का शपथ ग्रहण समारोह बहुत बेतुका लगा। इतनी गर्मी में इतने VIP और भाजपा कार्यकर्ताओं ने घंटों कडक धूप झेली और पसीने में नहाते रहे बिना पानी जैसी बुनियादी सुविधा के। ना तो यह जनता जनार्दन का उल्‍लास भरा उत्‍सव बन पाया और ना ही VIP वर्ग के लिये ग्‍लेमरस कार्यक्रम। ना राम मिला, ना रहीम। परन्‍तु सबसे ज्‍यादा चिन्‍ताजनक बात यह लगी कि सुरक्षा सम्‍बन्‍ध निहायत ढीले थे। यहां तक कि हममें से किसी का पहचान पत्र देखा या मांगा गया। ऐसी और कई कमियां सुरक्षा इंतजामों में दिखी। मैं जानती हूं कि यह कार्यक्रम राष्‍ट्रपति भवन की टीम ने किया, आपकी माहिर टीम ने नहीं। परन्‍तु आशा करती हूं कि गुजरात की तरह केवल VIP कार्यक्रमो की सुरक्षा नही, देश के आम नागरिकों की सुरक्षा आप के लिये प्राथमिक मुद्दा बना रहेगा। कल जब मैंने राष्‍ट्रपति भवन में तैनात पलिसकर्मियों से सुरक्षा सम्‍बन्‍धी इन्‍तजामात की शिकायत की तो उन्‍होनें तपाक से जवाब दिया – ‘’कल से हमारे भी अच्छे दिन आने वाले हैं।‘’ आशा है उनकी उम्‍मीदें व अपेक्षाये आपके प्रेरित करती रहेगी।    



यह लेख पहले जून 2014 में लाइव इंडिया में प्रकाशित किया गया था:

http://www.scribd.com/doc/234840308/An-open-letter-to-Narendra-Modi



Madhu Kishwar

Madhu Kishwar
इक उम्र असर होने तक… … … … … … … … … … … … … … … … … … … … … … …اک عمر اثر ہونے تک